प्रेम-सेतु कविता 💌⌛❤️❤️
राधाकृष्ण
कान्हा पूनम का है चंदा,
फिर उसका तेज क्यों आधा है।
लट श्यामल-सी , घुंघराली-सी ,
फिर लगती क्यों सादा है ।।
मुस्कुराहट उसकी जगमग जगमग ,
आनंद क्यों विहीन है।
चलता है क्यों डगमग डगमग ,
जो सबको मार्ग दिखाता है।।
जो सबके महाविघ्नहर्ता हैं ,
क्या उसकी भी कोई बाधा है।
हां है , क्योंकि है तो वो अपूर्ण ही ,
जब तक न साथ उसके राधा है।।
पनघट पर हर मटकी फोड़ी ,
माखन खाया करके चोरी।
मर्दन कर दिया महानाग ,
सोचो कैसी होगी वह प्रेम की डोरी।।
वध किया कंस,
सींचा गौवंश ,
सोचो कितना होगा वह प्रबल ।
कभी चक्र धारण किया ,
कभी नाद शंख ,
जपते उसको सभी अबल ।
यमुना तट के बंसी का धुन ,
क्यों सबके मन को भाता है ।
क्योंकि इसके तो हर सुर में राधा है,
इसके तो कण-कण में राधा है ।।
मुरलीधर से रणछोड़ बना ,
तो कभी लगाई रण की पुकार ।
जब धर्म था आरक्षित और भयभीत ,
कैसे दिया इसने सब संवार ।।
सागर से द्वारका छीन ली ,
तो उंगली पर गोवर्धन साधा ।
परन्तु जिसके अश्रु कभी सह ही न पाया ,
वो थी तो केवल राधा ।।
एकमात्र राधा है जिसने कृष्ण को साधा है ,
इसलिए यदि ,
नौका कृष्ण है , तो पतवार राधा है ।
जो पंछी कृष्ण है , तो बयार राधा है ।
यदि सिंह कृष्ण है , तो दहाड़ राधा है ।
इसलिए विरह के बाद कृष्ण लौटकर आता है ,
क्योंकि उसका एकमात्र लक्ष्य राधा है ।।
जो बिछड़े एक श्राप से ,
शत वर्ष भोगे सत्ताप के ।
पुनर्मिलन जो पूर्ण होने को ही था ,
पुनः दूर हो गए पाप से ।।
न तन में है , न वन में है ,
न बरसाना के उपवन में है ,
अरे ! कहां गया ये केशव ,
पाषाण बना या कंकड़ वो ,
जो जीवित है हरेक के मन में ,
यह प्रश्न हो ।।
अरे यदि कृष्ण को ढूंढ़ना है ,
तो राधा के ह्रदय को ढूंढ़ो मूर्ख ।
वो वैसे ही है ,
जैसे गौरी के मन में शंकर हो ।।
एक भाग अधूरा सृष्टि में ,
जो करता यूं प्रेम से विचरण ,
तो भाग दूसरा पूर्ण करने ,
स्वयं वो पुनः आता है ,
कुछ ऐसा ही राधाकृष्ण का नाता है ,
जो 'प्रेम-सेतु' कहलाता है ।।
राधे! राधे!
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